नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
अब थोड़ा मुस्कुरा दें...
मेरे एक सुभचिन्तक ने मुझे काम के तनाव से राहत देने के लिए एक मेल भेजा था जिसे आपके साथ साझा कर रहा हूँ ........
एक शराबी फुल टाईट होकर घर जा रहा था..
रास्ते में मंदिर के बाहर उसे एक पुजारी दिखा
शराबी ने पुजारी से पूंछा , सबसे बड़ा कौन ?
पुजारी ने पीछा छुड़ाने के लिए कहा "मंदिर बड़ा".
शराबी : "मंदिर बड़ा तो धरती पे कैसे खड़ा"
पुजारी: "धरती बड़ी"
शराबी : "धरती बड़ी तो शेषनाग पे क्यूँ खड़ी "
पुजारी : "शेषनाग बड़ा"
शराबी : "शेषनाग बड़ा तो शिव के गले में क्यों पड़ा"
पुजारी : "शिव बड़ा"
शराबी : "शिव बड़ा तो परबत पर क्यों खड़ा"
पुजारी : "पर्बत बड़ा"
शराबी : "पर्बत बड़ा तो हनुमान की ऊँगली पे क्यों पड़ा"
पुजारी : "हनुमान बड़ा"
शराबी : "हनुमान बड़ा तो राम की चरणों में क्यों पड़ा"
पुजारी : "राम बड़ा"
शराबी : "राम बड़ा तो रावन के पीछे क्यूँ पड़ा"
पुजारी : "अरे मेरे बाप अब तू बता कौन बड़ा"
शराबी : "इस दुनिया में वो बड़ा, जो पूरी बोतल पी के अपनी टांगो पे खड़ा."
Friday, September 10, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
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