नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
हैरत है..!
मित्रों ईद, गणेश चतुर्थी एवं तीज की आप सभी को शुभकामनाये.....
हैरत है देखकर , कितना भीरु समाज है ।
धर्म के नाम पर , लड़ रहा वो आज है ।
तुम भले कहो इसे , ये नयी बात नहीं ।
धर्म है अगर कई , संघर्ष नयी बात नहीं ।
आस्थाएं है अलग , हैं अलग सबके जुडाव ।
हम सही है वो गलत , बस यहीं होता टकराव ।
हर किसी को प्यारी है, विचारधारा अपने मन की।हैरत है देखकर , सोंच जनमानस की ये ।
भावनाएं सबकी प्रबल, जो गुलाम है उनके मन की।
हस्तक्षेप किसी गैर का , कब सहा मन ने कभी ।
अपमान सह ले तन भले, मन नहीं सह पाता कभी।
जब विरोधी कर रहे, बिध्वंस हो निज धर्म का ।
कैसे देंखे मौन हो , अपमान कोई धर्म का ।
धर्म के नाम पर , बरगलाया जाता है ये ।
जानवर के रूप में , इनके पुरखे थे कभी ।
मस्तिष्क का विकास कर , मनुष्य थे बने कभी ।
तन भले अलग हुआ , मन नहीं विकसित अभी ।
एक ही श्रस्टा यहाँ , पर लड़ रहे हम सभी ।
भूल कर उस धर्म को, जो मूल था सबका कभी।
अपने अहम् की तुष्टि को, कर रहे पूरा सभी।
हाँके जाते आज भी , भेड़ सा हम सभी ।
भूल कर सदभाव को , मूर्ख हैं बनते सभी ।
ढो रहे है आज भी , कूड़े कचड़े को सभी ।
रुक गया है आज क्या, मस्तिष्क का विकास भी।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Saturday, September 11, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
1 comments:
भई विवेक जी अच्छा लिखा है आपने
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