आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-

मै ?

कौन हूँ मै ?
यह सवाल मेरे मन में बचपन से आज तक लगातार घूमता रहता है ,और मै भी इसका विभिन्न कोणो से उत्तर पाने का लगातार प्रयास करता रहता हूँ , फिर चाहे वो मानव मनो-विज्ञानं का आयाम हो, धर्म का ध्यान हो, योग-भोग का संसार हो, या मेरे अंतर्मन के प्रबल,संतुलित अथवा दमित अहंकार का आयाम हो। यहाँ से मिलने वाले कुछ उत्तर कभी मुझे संतुष्ट करते है तो कभी और भी नए प्रश्न खड़े कर देतें है।

वैसे मित्रो सच कहे तो एक तरफ जहाँ अपने बारे में लिखने से ज्यादा मजेदार और रुचिकर कार्य और कुछ भी नहीं होता है वहीँ दूसरी तरफ अगर ईमानदारी से अपने बारे में कुछ लिखा जाना हो तो इससे ज्यादा लेखन क्षेत्र का कठिन कार्य भी कोई और नहीं है क्योंकि अगर आप केवल अपनी अच्छाईयाँ लिखेंगे तो आप की अंतर-आत्मा संतुष्ट नहीं होगी (यदि है तो) , और यदि वास्तविक स्थित लिखी जाय तो .......... आप जानते है।

मैंने बहुत बार अपने बारे में लिखने की कोशिश की मगर हर बार कलम रुक जाती है , "क्या कहू , कैसे कहू , क्या बताऊ , क्या छुपाऊ ।"

आज भी मेरी हालत कुछ ऐसी है :-

"चाह रहा हूँ लिखना कुछ , पर दिशा नहीं पाता हूँ ।
मन के भावों को शायद , मै पहचान नहीं पाता हूँ ।
बचपन से लेकर अपनी , युवावस्था तक आता हूँ ।
धर्म कर्म से लेकर अपनी , कूटनीति तक जाता हूँ ।
मन के भावों को लेकिन , मै शब्द नहीं दे पाता हूँ ।
शायद मन के भाव अभी , परिपूर्ण नहीं हो पाये है ।
या फिर शायद भाव सभी , परिपक्व नहीं हो पाये है।
जो भी हो लेकिन लिखने को, मै शब्द नहीं पाता हूँ।
चाह रहा हूँ लिखना कुछ, पर दिशा नहीं दे पाता हूँ।
भटक रहे अपने मन को, संयमित नही कर पाता हूँ।"

फिर भी चलिए अपने बारे में विभिन्न कोणों से कुछ कहने का प्रयास करता हूँ फिर आपसे मिली राय के आधार पर पुन: अपना विशलेषण करूँगा -

तो मेरा पहला परिचय है:-

"जाने कितने बादल आये , गरजे बरसे चले गए ।
मै भी एक छोटा सा बादल , बिन बरसे ही मै भटक रहा..।"

पर आपको सचेत कर दूँ की :-

"मै हूँ एक आईना केवल, जिसमे दिखोगे तुम ।
जैसे चाहोगे मुझे देखना, वैसा ही पाओगे तुम ।
मै ना बा-वफ़ा किसी का, ना होता बेवफा कभी ।
तुम जो भी चाहो समझो मुझे , मै हूँ खड़ा यहीं ।
यूँ मानव संग मै मानव हूँ, दानव मिले तो दानव हूँ ।
सज्जन हित सज्जनता है, दुर्जन की खातिर दुर्जनता ।
लोभी संग है लोभ जगे, त्यागी संग संसार त्याग दूँ । 
चोरों के संग चोर बनू , शाहों के घर का रखवाला।
कुटिलो हेतु कुटिलता है , अपनों हित है भाई-चारा ।
जो भी जैसा मिले मुझे , उसके जैसा रूप हमारा ।"

वैसे अध्यात्म से चलूँ तो :-
"देह धृष्ट तू दासो$हमं जीवदृष्टयात्वदंशका : आत्मदृष्टात्वैवाहमं"
अर्थात
मेरे प्रभु
"देह दृष्ट से अखिल जगत में, मै तेरा दास हूँ ।
तूने जग में मुझे बनाया, मैंने अपना पात्र निभाया
जीव दृष्ट से मै तेरा , बिखरा हुआ एक अंश हूँ ।
तूने श्रृष्टि की रचना की , मै तेरा ही वंश हूँ
आत्म दृष्ट से मै हूँ वही , जो तुम हो संसार में ।
तुम्ही आकर मुझे बताओ, कौन सा मै अवतार हूँ"
तो
"अहम् ब्रह्मास्मि"
तभी तो मै कहता हूँ कि..
"अहम् ब्रम्हा, अहम् विष्णु , अहम् देवो महेश्वरा ।
अहम् साक्षात परमब्रम्ह , नमो श्री विवेकाय नम:।"

कही ऐसा तो नहीं कि आपको मै बे-अंदाज लगने लगा  हूँ ?
अगर ऐसा है तो भी कोई बात नहीं क्योकि -

" यूँ और भी है इस दुनियां में , बे-अंदाज कई बड़के ।
कहते है विवेक मिश्र का , बे-अंदाजे बयां कुछ और है।" 

चलिए अब हिन्दू वर्गीकरण परिपाटी से चले तो :-

मै जन्म से ब्रह्मण हूँ, मन से क्षत्रिय, रोजगार से वैश्य हूँ और स्वाभाव (सेवा भाव) से सूद्र हूँ ।

ज्योतिष की बात करें तो :-




लग्न से वृश्चिक
राशी से वृष
वर्ण से वैश्य
वर्ग से मृग
योनी से सर्प
गण से मनुष्य हूँ।
अब मेरे बारे कुछ अन्य जानकारी में :-
१.
"आप चाहे जब परख लें , अपनी कसौटी पर मुझे ।
मै सदा मै ही रहूँगा , आप चाहे जो रहें ।
मुझको आता है नहीं , मौसमो की तरह बदलना ।
आप चाहे रोज ही , मेरे कपड़ों को बदलिए ।
मै कहाँ कहता की मुझमें , दोष कोई है नहीं ।
आप दया करके मुझे , देवत्व ना दे दीजिये ।
मुझको लगते है सुहाने , इंद्र धनुष के रंग सब ।
आप कोई एक रंग , मुझ पर चढ़ा ना दीजिये ।
हो सके तो आप मेरी , बात समझ लीजिये ।
दो पल है बहुत , एक पल तो दीजिये ।"

.
"मै नहीं नायक कोई , ना मेरा है गुट कोई ।
पर भेड़ो सा चलना मुझे , आज तक आया नहीं ।
यूँ क्रांति का झंडा कोई , मै नहीं लहराता हूँ ।
पर सर झुककर के कभी , चुपचाप नहीं चल पाता हूँ ।
आप चाहे जो लिखे , मनुष्य होने के नियम ।
मै मनुष्यता छोड़ कर , नियमो से बंध पाता नहीं ।
आप भले कह दें इसे , है बगावत ये मेरी ।
मै इसे कहता सदा , ये स्वंत्रता है मेरी ।
फिर आप चाहे जिस तरह , परख मुझको लीजिये ।
मै सदा मै ही रहूँगा , मुझे नाम कुछ भी दीजिये ।"

 To Be Cont.........

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण

Related Posts with Thumbnails क्रिएटिव कामन लाइसेंस
ब्लागाचार by विवेक मिश्र "अनंत" is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivs 3.0 Unported License.
Based on a work at vivekmishra001.blogspot.com.
Permissions beyond the scope of this license may be available at http://vivekmishra001.blogspot.com.

अनुरोध

शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।

अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।

खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।

जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।

ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।

सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।

तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।

मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।

विवेक मिश्र 'अनंत'

लेखा बही

इसे अवश्य पड़े

इस ब्लॉग में लिखी गयी वे समस्त कविताये एवं आलेख जिस पर किसी लेखक के नाम का जिक्र नहीं है मेरी डायरी के अंश है एवं इस पर मेरा अर्थात विवेक मिश्र का मूल अधिकार है एवं इनके प्रकाशन का सर्वाधिकार पूर्णतया मेरे पास है।
मेरी पूर्व अनुमति के बिना मेरी किसी कविता,लेख अथवा उसके किसी अंश का कहीं और प्रकाशन कांपीराइट एक्ट के तहत उलंघन माना जायेगा एवं गैर क़ानूनी होगा।
हाँ इस ब्लॉग अथवा मेरी किसी रचना को लिंक के रूप में प्रयोग किया जा सकता है परन्तु उसके साथ मेरे नाम का जिक्र आवश्यक होगा।
इस ब्लाग पर कभी कभी अन्य रचनाकार की रचना भी लगायी जा सकती है परन्तु वो हमेशा उनके नाम के साथ होगी।
विवेक मिश्र "अनंत"