नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
जिंदगी
यूँ दूर से देखो नहीं ,
तुम पास आओ कुछ जरा ।
जिंदगी के रूप का ,
आलिंगन कर लो तुम जरा ।
कुछ नहीं यहाँ पाप है ,
कुछ भी नहीं है पुण्य यहाँ ।
भूल कर सब पाप पुण्य ,
गोता लगाओ तुम यहाँ ।
छोड़ दो अब तुम तैरना ,
बहने दो धारा में स्वयं ।
किस डगर ले जाएँ जीवन ,
चुनने दो जीवन को स्वयं ।
जितने ही अवरोधों को ,
तुम बनोगे यहाँ ।
जिंदगी की मुश्किलों को ,
तुम बढाओगे यहाँ ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Saturday, September 04, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
1 comments:
अच्छी रचना.
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