नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
कैसे कहूँ ..?
क्या कहें हम आपसे ,
कैसे कहें हम सच अभी ।
साँस है उखड़ी अभी ,
और राज की है बात भी ।
तुमने दिया है वास्ता ,
गीता का हमको अभी ।
कैसे कहें हम पूरा सच ,
जब वासना मन में भरी ।
वासना एक शब्द है जो ,
है समेटे भाव अगणित ।
जो इसे जाना नहीं ,
वो ही यहाँ पर है व्यथित ।
मेरा क्या मै तो यहाँ ,
पहले से ही हूँ अतिथि ।
जितनी तरह की वासनाएं ,
सब से हूँ मै पतित ।
इस पल भी मै कुछ ऐसे ही ,
हाल से गुजरा अभी ।
मन में उभरे भावों को ,
कुछ पल जिया मैंने अभी ।
इससे ज्यादा क्या कहूँ ,
कुछ राज की है बात भी ।
साँस थम जाये जरा ,
फिर कहूँ आगे कुछ और भी ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Sunday, September 05, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
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