नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
हवा के पुल बनाने वाले...
हवा के पुल बनाने वाले, कभी धरातल पर पैर नहीं रखते।
वो ठोस जमीनी हकीकतों से, कभी वास्ता भी नहीं रखते।
सोंचते हैं वो हवा में , सब कार्य भी करते हवा में ।
सोंचते हैं वो हवा में , सब कार्य भी करते हवा में ।
कार्य का परिणाम भी , जग को दिखाते बस हवा में ।
पूँछो अगर सीखा कहाँ से, तुमने बनाना पुल हवा में ।
पूँछो अगर सीखा कहाँ से, तुमने बनाना पुल हवा में ।
बस मुस्कुरा देते है वो , उंगली दिखाते फिर हवा में ।
तो
वो जब बनाते पुल हवा में, स्वं भी हवा में रहते है ।
तो
वो जब बनाते पुल हवा में, स्वं भी हवा में रहते है ।
हाथों से करते इशारे, कुछ अनबूझे से वो हवा में ।
फिर रात को सोते में भी , बाते करते वो हवा में ।
फिर रात को सोते में भी , बाते करते वो हवा में ।
अनगिनित फरमान भी, वो जारी करते है हवा में ।
इस तरह से जब कभी , वो बनाते पुल हवा में ।
इस तरह से जब कभी , वो बनाते पुल हवा में ।
मेहनत का पैसा किसी का , वो लुटाते है हवा में ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Wednesday, August 04, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
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