नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
जल में रहकर मगर से बैर ?
मित्रों
आप सभी ने एक कहावत बहुत बार सुनी होगी :-
"जल में रहकर मगर से बैर"
अर्थात
जल में रहने पर मगर से बैर मोल नहीं लिया जा सकता है ।
क्यों ?
अरे आप नहीं जानते क्या ?
मगर जल का सबसे ताकतवर प्राणी होता है , उसके आगे जल में हाथी भी कमजोर पड़ जाता है ( वैसे सार्क और व्हेल और भी ताकतवर होती है मगर वो नदी , नालों में नहीं पाई जाती है , जिसके आसपास मनुष्य ही अपने दैनिक कार्य हेतु ज्यादा घूमता है) ।
तो कहते है कि :- एक बार तो स्वं भगवान विष्णु को अपने प्रिय भक्त "गजराज" को बचाने की आकस्मिक आवश्यकता के तहत नंगे पाँव ही दौड़ कर आना पड़ा था तब जाकर वो मगर से बच पाया था ।
तो अब तो आप समझ ही गए होंगे ।
क्या कहा ?
ये सब तो आप पहले से जानते है !
तो मैंने कब कहा कि मै अब तक कुछ नया बता रहा था ।
जो नया है, वो अब आने जा रहा है, विशुद्ध रूप से मेरी शोध।
तो दिल थम कर बैठे ..!
क्षमा कीजियेगा मेरे कहने का अर्थ है आँख फाड़ कर पढ़े और मेरे प्रवचनों को अपने दिल, दिमाग में बिठाकर अपने अंतर्मन से गुने ...........
" जल में रहना हो तो मगर से बैर करके रहो "
अब जो मेरी जीव्हा से निकल गया उसे खरा भी साबित करना होगा वर्ना कौन मानेगा ..?
आजकल तो वैसे भी मुफ्त की सलाह पर कोई ध्यान नहीं देता है , भले ही वो कितने ही काम की क्यों ना हो ।
तो चलिए अपने कथन को विसुद्ध तार्किक रूप से किसी निर्मेय , प्रमेय की तरह साबित करता हूँ :-
कथन :- " जल में रहना हो तो मगर से बैर करके रहो "
अर्थ :- जल में सुरक्षित रहना हो तो मगर से बैर करके रहो ।
कारण :- मगर अपनी आदत से मजबूर है । अगर आप उससे दोस्ती भी कर लो या नहीं करके गुटनिरपेक्षता का राग अलापो , तो भी वो ज्यादा दिन चलने वाली नहीं है क्योंकि जिस दिन उसे कहीं और से कुछ खाने को नहीं मिलेगा वो घास खाकर या केवल जल पीकर व्रत रहने वाला नहीं है । उस समय उसके सबसे नजदीक (दोस्ती की है तो), या आसपास (अगर गुटनिरपेक्ष है तो) जल में कौन होगा ? आप !
और आप अनजाने में, प्यार मोहब्बत में , गुटनिरपेक्षता में या कहें कि मगर के प्रति अपने गफलत में होंगे।तो फिर समझ लीजिये कि आप का काम तमाम !!!
पढ़ा है ना आपने बचपन में "मगर और बन्दर वाली कहानी" जिसमें मगर की सह्धर्मनी जिद कर बैठती है कि आपके मित्र का कलेजा बहुत मीठा है , आज वो उसी की दावत करेगी और मजबूरन ही सही मगर बन्दर को मारने के लिए उसे धोखे से अपने घर ले आता है । (वैसे यहाँ मै मगरानी को दोष नहीं दूंगा क्योकि ज्यादातर स्त्रियाँ स्व्भावगत रूप से या किसी अनजाने जलन के कारण अपने पतियों को उनके मित्रों से किसी ना किसी बहाने अलग करना ही चाहती है।..इस पर फिर कभी अपनी शोध प्रकाशित करूँगा )
औरअगर आप उससे बैर करके रहेंगे अर्थात सदा उससको अपना दुश्मन मान कर रहेंगे तो खुदा कसम दुनिया जानती है कि लोग अपने दुश्मनों को ज्यादा गहराई से जानते है मुकाबिल अपने दोस्तों के ।
तो उस हालत में आप उससे सोते - जागते सदैव सावधान रहेंगे और हो सकता है कि आप अपने सामर्थ भर उससे निपटने का इन्तिजाम भी कर लें। इस तरह शायद आप ज्यादा देर सुरक्षित रह सकें ।
निष्कर्ष :- यदि कोई यह सोंचता है कि जल में रहकर मगर से बैर नहीं करना चाहिए तो उसे जल को छोड़ कर कहीं और निवास-प्रवास करना चाहिए वर्ना आपकी जान को ज्यादा जोखिम होगा ।[ इत-श्री ]
नोट :- वैसे यह बहुत ही गूढ़ और गुप्त सिद्धांत था जिसको सभी के सामने तो नहीं प्रकट करना चाहता था मगर जन-कल्याण हेतु मुझे त्याग करना ही पड़ा ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG ।
Wednesday, August 04, 2010
|
Labels:
अनंत अपार असीम आकाश : http://vivekmishra001.blogspot.com,
आलेख,
कूटनीति,
गिद्ध साहित्त्य,
जन-संवाद,
दर्शन,
प्रबंधन
|
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


ब्लागाचार by विवेक मिश्र "अनंत" is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivs 3.0 Unported License.
Based on a work at vivekmishra001.blogspot.com.
Permissions beyond the scope of this license may be available at http://vivekmishra001.blogspot.com.
अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
0 comments:
Post a Comment