नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
कुछ अनजाने चहरे,कुछ अनजाने लोग....
दोस्तों ,
आजकल जिंदगी की व्यस्तता कुछ ऐसी है कि अपनो के लिए ही समय नहीं मिलता है । फिर इसी व्यस्तता के क्षणों में ना जाने कितने अनजाने लोग हमारी जिंदगी में आते है , उनमे से कुछ याद रह जाते है कुछ भूल जाते है , कुछ अनजाने ही बने रहना चाहते है तो कुछ को हम अपना नहीं बनाते है । इसी के सन्दर्भ में अपने मान के भावों को व्यक्त करने का मेरा प्रयास है - "कुछ अनजाने चहरे,कुछ अनजाने लोग" ।
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कुछ जाने पहचाने चहरे है , कुछ अनजाने लोग यहाँ ।
कुछ को जान ना पाया मै , कुछ से होनी पहचान यहाँ ।कुछ होते है कागज के फूल , जो बस पहचान निभाते है ।कुछ लोंगों को मै भूल गया, कुछ लोंगो को है भुला दिया ।
कितने अगणित चेहरों को, मन-मस्तिष्क से है मिटा दिया ।
कुछ होते है 'लटजीरे' से , जो चिपक साथ में जाते है ।ऐसे जाने कितने ही , प्रतिपल मिलते लोग यहाँ ।कुछ अपनी पहचान बताते है, कुछ अपना सर्वस छुपाते है ।
कुछ दिल से गले लगाते है , कुछ नाटक करते जाते है ।
चहरे पर भाव छिपाकर , अनजाने बनते लोग यहाँ ।किस किस से मै पहचान करू, किस किस की मै पहचान करू ।
कुछ नए अपरिचित लोग यहाँ, कुछ 'घाघ' अपरिचित लोग यहाँ ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Tuesday, August 03, 2010
|
Labels:
अनंत अपार असीम आकाश : http://vivekmishra001.blogspot.com,
मेरी कवितायेँ,
राग-रंग,
व्यंग बाण
|
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


ब्लागाचार by विवेक मिश्र "अनंत" is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivs 3.0 Unported License.
Based on a work at vivekmishra001.blogspot.com.
Permissions beyond the scope of this license may be available at http://vivekmishra001.blogspot.com.
अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
0 comments:
Post a Comment