आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-

मन की पाती

भेज रहा हूँ तुमको प्रियवर , अपने प्रेम की पाती ।
प्रेम भाव में डूबे अक्षर , प्रेम रंग की पाती ।

पहले भी मै लिखता था , कुछ कोरे अक्षर कोरी पाती ।
तुमसे मिलकर सीख गया , अब प्रेम भाव की बाती ।

पहले भी मै मिलता था , कुछ खाली कोरे भावों से ।
लेकिन अब तो भरा हुआ हूँ , तेरे प्रेम के भावों से ।

सोँच रहा हूँ तुमने भी, शायद लिखी हो मुझको पाती ।
यदि ऐसा है निश्चय ही , होगी उसमें दिल की बाती ।

अगर नहीं लिख पायी हो, मुझे प्रेम की अपनी पाती ।
तो तुम लौटा देना मुझको , मेरे अक्षर मेरी पाती ।

मै इसे सहेज कर रख लूँगा , अपने प्रेम पिटारे में ।
तुम जब आना पास मेरे , पढ़ लेना कभी इशारे से ।

शायद तुमको भुला सकूँ , इससे कुछ दिन और अभी ।
या फिर शायद इसी तरह , मै तेरे प्रेम को पाऊँ अभी ।

जो भी हो अच्छा ही होगा, यही सोँच कर लिखता हूँ ।
लो अपने प्रेम की पाती को, अब तेरे हवाले करता हूँ।।
(मूलत: ०१/०६/२००१-को लिखा हुआ , उसके लिए जो मेरा आधा भाग है )

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 comments:

Udan Tashtari said...

सुन्दर...भावपूर्ण एवं प्रवाहमयी.

vishal said...

अरे भाई जिनके (आधे भाग) लिए यह कविता लिखी है, घर आ गई हैं या वेट कर रहे हैं। :))

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण

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अनुरोध

शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।

अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।

खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।

जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।

ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।

सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।

तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।

मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।

विवेक मिश्र 'अनंत'

लेखा बही

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