नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
जिन्दगी शोलों में तप-तप के...."ओशो"
जिन्दगी शोलों में तप-तप के निखरती ही गयी ।
जितनी ताराज हुयी, और सँवरती ही गयी ।
तल्खियाँ जैसे फिजाओं में घुली जाती हैं ।
जुल्मते हैं कि उमड़ती ही चली आती हैं ।
आशियाने के करीं बिजलियाँ लहरातीं हैं ।
आग और खून के तूफां भी चले आते है ।
मुह कि खाते हैं,पछड जाते है,जक पाते है ।
जितनी तराज हुई जिंदगी , संवरती ही गयी ।
आग के शोलों में तप तप के निखरती ही गयी ।
आगें जलती ही रहीं , शोले बरसते ही रहे ।।
Thursday, August 26, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
1 comments:
जय ओशो!!
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