नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
क्षमा करो 'आजाद' हमें
15 अगस्त की पूर्व संध्या पर आजादी के दीवानों को समर्पित
क्षमा करो 'आजाद' हमें , आजादी हमने अपनी बेंची ।
दुनिया के रखवालों से , हमने अपनी शांति खरीदी ।भुला दिया पौरुष अपना , बाट जोहते औरों की ।
जिनसे तुमने संघर्ष किया , हम गले लगाते उनको ही ।आन देश की बेंच कर हमने , शान बढाई है तन की ।
शान देश की बेंच कर हमने , जान बचाई है अपनी ।भूल गए हम स्वप्नों को , अंतिम समय जो तुमने देखे ।
मिटा दिये सब आदर्शों को , जो तुमने हमको थे भेजे ।वैश्वीकरण का युग आया , सत्ता में घुस गए दलाल ।
अपनों के सीनों पार ताने , sangIne अपने ही लाल ।परिभाषा भले 'आजाद' हो , अब कहाँ देश आजाद है ?
स्वाधीन था जो पहले , सब पराधीन अब आज है ।
Saturday, August 14, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
1 comments:
बहुत सुन्दर, स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामना!
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