आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-

क्या खाएं ? , कैसे खाएं ? , कहो तो भूंखे ही मर जाये ।

क्या खाएं ? , कैसे खाएं ? , कहो तो भूंखे ही मर जाये ।
पैसा सबके हाथ में ,  शुद्ध भोज्य नहीं है पास में  ।
गेंहू , चावल दाल सभी , फूल रहे हैं उर्वरको  से ।
उपर से उसमे भी मिलावट , नहीं कहीं है कोई राहत ।
दूध में पानी और पावडर , मिला रहे थे वर्षो से ।
अब तो उसमे मिला रहे है ,  यूरिया, सर्फ और स्टार्च ।
पनीर कहाँ अब असली है?, दही भी मिलती नकली है ।
बना रहे है आइसक्रीम , वॉशिंग पाउडर, सैकरीन से ।
पहले घी में मिलता था , चर्बी मिला डालडा ही ।
अब तो घी को बना रहे , मुर्दों की हड्डी से हम ।
चीनी में मिला चॉक पाउडर , मिर्चे में है ईंट पाउडर ।
काली मिर्च है बीज पपीता , धनिये में पशुवों की लीद ।
हींग में मिटटी मिला रहे ,  हल्दी में जहरीला रंग ।
काफी में है मिला चिकोरी , चाय है पहले वाली उबली ।
नामक का मान रखेगा कौन, खिला रहे है व्हाइट पाउडर ।
है तिल का तेल पुरानी बात , अब उसमे सब नकली बात ।
कद्दू , कोहड़ा , लौकी सब , फूल रहे इंजेक्शन से ।
पल में छोटी सी बतिया , एक साथ की होती है ।
केला,आम,अनार,पपीता , पका रहे है जहर से हम ।
रंग में रंगी हुयी सब्जियां , बिकती है बाजार में ।
नकली कत्था और सुपाड़ी , है पान की दुकान में ।
जहरीली स्प्रिट है बिकती , मदिरा के नाम पे ।
कैचप,सास, और जैम भी , बनता नकली फैक्ट्रियों में ।
हर असली में मिला है नकली, आज यहाँ बाजार में ।
भरता पेट नहीं मानव का , लाभ कमाने के लोभ से ।
क्या खाएं?, कैसे खाएं ?, कहो तो भूंखे ही मर जाये ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 comments:

PKSingh said...

bahut sundar!!
...aabhar
bahut achha blog hai..

अल्पना वर्मा said...

वाह! बिलकुल सही कहा आप ने ,ये ही हाल है आज.चित्र ने गंभीर विषय पर लिखी कविता को अधिक रोचक बना दिया .

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण

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अनुरोध

शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।

अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।

खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।

जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।

ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।

सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।

तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।

मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।

विवेक मिश्र 'अनंत'

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