नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
विषाद के क्षणो का कारण
विषाद के क्षणो का, सदा कारण नहीं होता है ।
और ऐसा होना भी, अकारण नहीं होता है ।
ज्यों दूर गगन में कहीं, बादलों से ढ्क गया चाँद हो ।ओझल हो तारे सभी पर, उन्हें ना इसका गुमान हो ।
कुछ इसी तरह से जब , मन अज्ञात भावों से घिरता है ।
अकारण ही अवसाद का, एहसास मन में भरता है ।
दूर जाना हो अगर , अवसाद के इन बादलों से ।चीर दो अज्ञात को , ज्ञात के तलवार से ।
तुम नियंता मन के हो , मन को तुम्ही चलाते हो ।
ज्ञात और अज्ञात का , अंतर भी तुम्ही बनाते हो ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Sunday, August 22, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
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