नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
तुम त्याग के मारों क्या जानो, भोग भी एक तपस्या है ।
1.
तुम त्याग के मारों क्या जानो, भोग भी एक तपस्या है ?
तुम त्याग के मारों क्या जानो, भोग भी एक तपस्या है ?
लो सुनो तुम्हे बतलाता हूँ , भोग भी एक तपस्या है ।
तप का अर्थ है तपना , बाहर भीतर दोनों ही ।
भोग का अर्थ है जुड़ना , बाहर भीतर दोनों ही।।
2.
क्या बिन भोगे तुम तप पाये हो, या तपे बिना हम भोग सकें है ?
क्या बिन भोगे तुम तप पाये हो, या तपे बिना हम भोग सकें है ?
जितना ज्यादा तुम भोगे हो , उतना ही हम तप कर आयें है ।
तप के कोख से भोग है जन्मा , भोग के कोख से तप है जन्मा ।
तप-तप कर तुम भोगी हो गए , हम भोग-भोग कर योगी हो गए।।
3.
इसी लिए तुम्हे समझाता हूँ , ये प्रकृति का रहस्य बताता हूँ ।
इसी लिए तुम्हे समझाता हूँ , ये प्रकृति का रहस्य बताता हूँ ।
बिना भोग के योग नहीं है, और बिना योग के भोग नहीं है ।
जब भोग सकोगे जग को तुम , तब पाओगे तप को तुम ।
जब तप जाओगे सच में तुम , तब भोग सकोगे जग को तुम।।
4.
तुम योग के मारों क्या जाने , त्याग ही एक तपस्या है ?
तुम योग के मारों क्या जाने , त्याग ही एक तपस्या है ?
हम भोग में रहकर जान गए , त्याग भी केवल भोग ही है ।
ये माया और बैराग्य की बातें, बंद करो कुछ पल को तुम ।
आओ तुम्हे बताता हूँ , कुछ भोग की कोख से जन्मी बातें।।
5.
है जग का नियम अटल पर कटु , जो कुछ पाये हो लौटोगे ।
है जग का नियम अटल पर कटु , जो कुछ पाये हो लौटोगे ।
पर क्या जग में है कुछ ऐसा भी, जो बिन पाये ही लौटाओगे ?
जब भरा रहेगा सब कुछ तेरा , जो चाहोगे त्याग सकोगे ।
यदि खाली हाथ ही जाओगे , कुछ भी पाओगे ले आओगे ।
6.
मै इसी लिए समझाता हूँ , 'शिव-शंकर' का रहस्य बताता हूँ ।
मै इसी लिए समझाता हूँ , 'शिव-शंकर' का रहस्य बताता हूँ ।
जो भोगी हैं, आधे योगी है , जो योगी हैं, आधे भोगी है ।।
जो समझ सके ना अब भी तुम , योग - भोग के अंतरतम को ।
ना भोग सकोगे जग को ही, ना त्याग सकोगे जग को तुम ।
7.
ना बन पाओगे योगी ही , ना बन पाओगे भोगी ही ।
ना बन पाओगे योगी ही , ना बन पाओगे भोगी ही ।
बस बन कर त्रिंकुश के जैसे , रह जाओगे ढोंगी ही ।
तो आओ दो पल तुम समझो, इस त्याग-भोग के सामंजस को ।
फिर सोंचो क्या बनना है ? केवल आधा या पूरा योगी,भोगी।।
फिर सोंचो क्या बनना है ? केवल आधा या पूरा योगी,भोगी।।
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Thursday, August 19, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
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