आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-

प्रश्न ??

जाने कब मै प्रश्नों का, पाउँगा कोई उत्तर ?
जाने कब मेरे प्रश्नों के , लायक होंगे कुछ उत्तर ?

प्रश्न ये नहीं 'प्रश्न क्या है ' ,
प्रश्न है 'प्रश्न क्यों अभी  भी क्या है' ?
और ये प्रश्न आज का है भी नहीं ,
ना ही ये उपजा परिस्थित जन्य है ।
फिर ये प्रश्न जीवित क्यों है ? ,
है अगर जीवित तो अनुत्तरित क्यों है ?

दूर कोने में अकेला, ये खड़ा चुपचाप क्यों है ?
भूंखा प्यासा वर्षों से , ये रहा चुपचाप क्यों है ?
प्रश्न ये है , प्रश्न क्यों , इस तरह चुपचाप है ?
है अगर ये प्रश्न ही तो , क्यों रहा चुपचाप है ?

आप कहते है की ये , शायद कोई है मौन प्रश्न ।
प्रश्न है मौन को क्यों , इतना महत्व देते आप है ?
और यदि उत्तर नहीं , आज तक इसका मिला ।
प्रश्न ये है आज क्यों , होते विकल यूँ आप हैं ?

प्रश्न तो बस प्रश्न है , प्रश्नवाचक उसका स्वरुप ।
जन्म लेना उसकी आदत , नहीं मरण की है अनुभूति ।
खोज कर उसका हम उत्तर , तृप्त मन को ही हैं करते । 
पर प्रश्नवाचक चिन्ह को , कब प्रश्न से हम अलग हैं करते ?

लो  फिर वही अब प्रश्न है , क्यों आज उठा ये प्रश्न है ।
आज तक क्या कर रहा था , क्यों नहीं उत्तर मिला था ?
आगे भी यूँ ही भटकता , कब तक रहेगा प्रश्न ये ?
है कहाँ उत्तर अभी , और कौन देगा वो हमें ?

जाने कब मै प्रश्नों का, पाउँगा कोई उत्तर ?
जाने कब मेरे प्रश्नों के , लायक होंगे कुछ उत्तर ?

 © सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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अनुरोध

शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।

अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।

खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।

जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।

ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।

सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।

तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।

मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।

विवेक मिश्र 'अनंत'

लेखा बही

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