आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-

अंधेर नगरी

मित्रों,
         बचपन  में दादा जी के मुह से सुना था " अंधेर नगरी चौपट राजा, सवा सेर भाजी सवा सेर खाझा " पर क्या ये बात सिर्फ कहानियों तक ही सीमित है ? शायद नहीं , तो सुने ............. 

अंधकार का राज जहाँ हो,
                                    आडम्बर पलता बढता है।
 मात्र दिखावा करने से ही,
                                     जीवन यापन चलता है।
सच का होता मूल्य नहीं,
                                    ना कोई पारखी होता है।
कोरे होते सिद्धांत सभी ,
                                   आदर्श खोखला होता है।
नव पथ का होता श्रजन नहीं,
                                   गणेश परिक्रमा होता है।
सच को झूंठ ,झूंठ को सच,
                                   मनमाना निर्णय होता है।।
                     चाटुकारिता वहां पनपती,
                                    तृप्त अहम् को मिलता है।
अपना हिस्सा पाने को,
                                  बस गुप्त होड़ तब चलता है ।
आम को आम नहीं कहकर,
                                   जग उसको इमली कहता है।
कुत्ते के पिल्लों को जग,
                                   जंगल का राजा कहता है।
ऐसे चौपट राजा का ,
                                  राज जहाँ भी चलता है।
वह राज्य छोड़ कर दूर कहीं,
                                  बंजर में रहना अच्छा है।
3TW9SM3NGHMG

2 comments:

honesty project democracy said...

सार्थक व सराहनीय प्रस्तुती ,सत्य को उजागर करती शानदार पोस्ट ...

आनन्‍द पाण्‍डेय said...

उत्‍तम: प्रयास:

शोभनं काव्‍यम्

ब्‍लाग जगत पर संस्‍कृत प्रशिक्षण की कक्ष्‍या में आपका स्‍वागत है ।
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अनुरोध

शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।

अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।

खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।

जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।

ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।

सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।

तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।

मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।

विवेक मिश्र 'अनंत'

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