नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
प्रगति तभी प्रगति है जब वह निरंतर हो...।
प्रगति है सच्ची वही , जिसमे निरंतरता रहे ।
कल-कल बहती हुयी नदी सी, निर्मल स्वच्छ धारा बहे।
रुक गयी धारा अगर , विषाक्त हो जायेगा जल।
संचित हुए सब पुण्य का , खर्च हो जायेगा फल।।
चाहे प्रगति हो राष्ट्र की , या हो प्रगति वह धर्म की ।
चाहे प्रगति हो सामूहिक , या हो प्रगति निज लाभ की ।
शांति और सुख है वहीँ , संतुष्टि हो मिलती जहाँ ।
संतुष्टि होती है वहीँ , निरंतर प्रगति होती जहाँ।।
। 3TW9SM3NGHMG
Friday, July 30, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
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