नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
संगी साथी और सफ़र
१.
चल पड़े मेरे कदम , जिंदगी की राह में ।
दूर है मंजिल अभी, और फासले है नापने।
जिंदगी है बादलों सी, कब किस तरफ मुड जाय वो ।
जिंदगी है बादलों सी, कब किस तरफ मुड जाय वो ।
बनकर घटा-घनघोर सी , कब कहाँ बरस जाय वो ।
क्या पता उस राह में , हमराह होगा कौन मेरा ?
ये खुदा ही जानता , या जानता जो साथ होगा।
२.
कारवां की खोज में , क्यों भटकते आप हों ?
तुम सफ़र अपना करो , कारवां मिल जायेगा।
क्यों है हसरत साथ की , जब तुम अकेले आये हो ।
एक दिन सब छोड़ कर , सब फिर अकेले जायेंगे ।
भूल से तुझको कहीं , साथी अगर मिल जायेगा ।
तेरा दिल रोयेगा जब , वक्त बिछुड़ने का आएगा ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Wednesday, July 28, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
1 comments:
अच्छी अभीव्यक्ति ,,,सुन्दर शब्दों से सजी सुन्दर रचना !!!१ बधाई स्वीकारे ,,,शब्दों के इस सुहाने सफर में आज से हम भी शामिल हो रहे है ,,,,
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