नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
मुक्ति
Sep
18
बस तेरी प्रतिक्षा में , गुजार दी जिंदगी हमने ।
आप जो आये नहीं , उजाड़ ली जिंदगी हमने ।
सब्र की सीमाएं थी , हम प्रतिक्षा करते कब तक ।
कागजो को स्याहियों से , हम भरा करते कब तक ।
आपने ना भुलाने की , हमसे कसम ले डाली थी ।
छोड़ कर जाना नहीं , ये बात भी उसमे डाली थी ।
फिर आपके भूल जाने से , जिंदगी मेरी खाली थी ।
छोड़ दी मैंने उसे , क्यों करनी उसकी रखवाली थी ।वादा निभाया मैंने और ,लाज बच गयी तेरी भी ।
अगले जन्म में मिलने की , आस बच गयी मेरी भी ।
मुक्त मै करता हूँ तुमको , तेरे भूले बिसरे वादों से ।
मत करना तुम ग्लानि कभी , अपने अधूरे वादों से ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Saturday, September 18, 2010 | Labels: अनंत अपार असीम आकाश : http://vivekmishra001.blogspot.com, मेरी कविताएँ, राग-रंग |
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
लेखा बही
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2 comments:
bhut sundar...
वादा निभाया मैंने और, लाज बच गई तेरी भी।
अगले जन्म में मिलने की, आस बच गई मेरी भी।
मुक्त मैं करता हूँ तुमको, तेरे भूले बिसरे वादों से।
मत करना तुम ग्लानि कभी, अपने अधूरे वादों से।
bahut khoob vivek bhai, Bejod!
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