नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
पीने दो मुझको भी
Sep
22
पुरनम ना हुयी हो आँखे जब , कैसे नजर हटा लूँ मै ।
जब तक होश है बाकी कैसे , अपनी पीठ दिखा दूँ मै ।
जब साईं मेरा बाँट रहा , क्यों नाप तौल कर आज पिऊ ।
अब आई जशन की बारी है , क्यों खड़ा कहीं एकांत रहूँ ।
देखो आज बहारें भी , छक कर पीने आयीं हैं ।
नील-गगन और धरती भी , मदहोशी को पायीं है ।
पीने दो मुझको भी छक कर , जन्मो का मै प्यासा खड़ा ।
इस पर है मदिरा साईं की , उस पर है रुखा जगत खड़ा ।
जब तक शेष है मै मुझमें , मदहोशी कहाँ आ पायेगी ।
इस छोटे से दिल में कैसे , साकी की जगह हो पायेगी ।
मत रोंको मुझको आज अभी , मिट जाने दो मयखाने में ।
जो आज चूक मै गया कहीं , कई जन्म लगेंगे जाने में ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Wednesday, September 22, 2010 | Labels: अनंत अपार असीम आकाश : http://vivekmishra001.blogspot.com, मेरी कविताएँ |
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
लेखा बही
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- कुल टिप्पणियां: 110
2 comments:
Beautiful creation !
अच्छी पंक्तिया ........
.
यहाँ भी आये एवं कुछ कहे :-
समझे गायत्री मन्त्र का सही अर्थ
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