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ताश के गुलाम

Sep 19

ताश के खिलाडियों को समर्पित......

सुनो ताश के सभी गुलामों , लाओ जाकर ताश के इक्के ।
बेगम/रानी के संग जाने को , तैयार हो रहे ताश के बदिश/राजे ।
महिफिल आज जमेगी देखो , जाओ सजाओ चिड़ी का बाग ।
मौज करेंगे हम सब आज , चलो जलाएं मिलकर आग ।
ईट का बदिश/राजा कानां है , ये राज छुपाये तुम रखना ।
हुकुम की बेगम/रानी सायानी है ,  ये बात ना खुलकर तुम कहना ।
नहले पर जब दहला गिरे , इक्के से देना तुम दाब ।
तुरुप/रंग की बाजी चलकर फिर , करना सबसे तुम आदाब ।
रंग में भंग अगर कोई डाले , बच कर ना वो जाने पाये ।
कोई चाहे जितना जोर लगाये , दहला ना ले जाने पाये ।
रोंक सके जो ट्रंप/तुरुप का इक्का , पहनायेगा तुमको ताज ।
बावन पत्ते ताश के होते , लेकिन वो सबका सरताज ।
बस ध्यान रहे केवल इतना , जोर ना उसका घटने पाये ।
उसके पीछे चलने वाली , चाल ना कोई कटने पाये ।
गिरे कौन से पत्ते अबतक , तुमको रखना होगा याद ।
हाथ में कौन से पत्ते किसके , जानोगे तुम उसके बाद ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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अनुरोध

शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।

अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।

खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।

जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।

ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।

सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।

तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।

मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।

विवेक मिश्र 'अनंत'

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