नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
इंसानियत की खोज में
इंसानियत की खोज में, मुझको मिला इन्सान एक ।
मैंने पूंछा क्या करोगे ? , खोज कर बेकार अब ।
मैंने पूंछा क्या करोगे ? , खोज कर बेकार अब ।
क्या करोगे जान कर ? , इंसानियत रहती कहाँ ?
जिन्दा रहने के लिए , क्या है वो खाती यहाँ ?
नाम क्या उसके पिता का , कौन उसकी माता है ?
कौन है भ्राता यहाँ और , मुझसे क्या अब नाता है ?
जिन्दा रहने के लिए , क्या है वो खाती यहाँ ?
नाम क्या उसके पिता का , कौन उसकी माता है ?
कौन है भ्राता यहाँ और , मुझसे क्या अब नाता है ?
जावो जाकर तुम भी , औरों की तरह हीँ खुश रहो ।
इंसानियत के नाम पर , ओंठ सिल कर चुप रहो ।
यदि मिल गयी इंसानियत , तुमको भूले से कहीं ।
भूल कर अपने दुखों को , रो पड़ोगे तुम वहीँ ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
इंसानियत के नाम पर , ओंठ सिल कर चुप रहो ।
यदि मिल गयी इंसानियत , तुमको भूले से कहीं ।
भूल कर अपने दुखों को , रो पड़ोगे तुम वहीँ ।
बेहतर है इंसानियत को , खोज ना इन्सान तू ।
बन चुका हैवानियत का , आज जब पहचान तू ।।
बन चुका हैवानियत का , आज जब पहचान तू ।।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Sunday, August 01, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
1 comments:
वक्त नहीं!
हर खुशी है लोगों के दामन में, पर एक हँसी केलिए वक्त नहीं
दिन रात दोड़ती दुनिया में जिंदगी के लिए वक्त नहीं .
माँ की लोरियोंका अहसास तो है, पर माँ को माँ कहने को वक्त नहीं ,
सारे रिश्तो को हम मर चुके, अब इन्हे दफनाने को भी वक्त नहीं.
सारे नंबर मोबाइल में है, पर दोस्ती के लिए वक्त नहीं,
गेरों की क्या बात करे, जब अपनोके लिए वक्त नहीं.
आखो में है नींद बड़ी, पर सोने का वक्त नहीं ,
दिल है गमोसे भरा हुआ, पर आज रोने को भी वक्त नहीं.
पैसो की इस दौड़ में, ऐसे दौड़े की थकने को भी वक्त नहीं ,
पराये एहसासों की क्या कदर करे, जब अपने सपनों के लिए ही वक्त नहीं.
तू ही बता ऐ जिंदगी इस जिंदगी का क्या होगा ,
के हर पल मरने वालो को जीने के लिए वक्त नहीं.
जीने के लिए वक्त नहीं.
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