नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
क्या कमी थी दुश्मनों की, फिर दोस्ती करने चले ?
क्या कमी थी दुश्मनों की , फिर दोस्ती करने चले ?
क्या पीठ में थे घाव कम , तुम गले मिलने चले ?
इससे अच्छा था कि तुम, दुश्मनों को खोजते ।
कम से कम धोखे से वो , दोस्ती करते नहीं ।
तुम ना यू हैरान हो , क्या ये उल्टा राग है ।दुश्मनी कैसी भी हो , कुछ दोस्त रहते है वहां ।
दुश्मनी की ओट में , अक्सर वफ़ा करते यहाँ ।
दोस्ती बिन स्वार्थ के , कौन करता आज है ।
कौन कहता है कि दुश्मन , दोस्त से अच्छा नहीं ।
कम से कम दिल पे हमारे , घाव तो करता नहीं ।क्या कमी है दोस्तों की , दुश्मनों के बीच भी ।
बस एक नजर देखो जरा , दुश्मनों के बीच भी ।
हित सधे अपना अगर , दोस्ती दुश्मन करे ।
जग के दिखावे के लिए , दुश्मनी करता रहे ।स्वार्थ हो अपना अगर, दोस्त है दुश्मन बने ।
बस दिखावे के लिए , वो दोस्ती करता रहे ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Wednesday, August 18, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
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