नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
मेरा अपना
सिद्धान्त बनाये पुरखों के , क्रांति हमारी अपनी है ।आदर्श रचाए पुरखों के , विचलन उससे अपनी है ।
नीति-रीति की सारी बाते , भूली बिसरी है कुछ यादें ।कैसे वो सब याद करू, जो नहीं है मेरे मन की बातें ।
जब मेरा अपना चेहरा है,
क्यों कोई और मुखौटा मै अपनाऊ ।
अपने नाम के आगे क्यों,
किसी और का मै गुरु- नाम लगाऊ ।
सब दूर के ढोल सुहाने है ,
पर ढोल की पोल क्यों भूल मै जाऊ ।
सच का साथ छोड़ कर मै ,
कहो, आडम्बर से क्यों हाथ मिलाऊ ।
तुम भले कहो अभिमानी मुझे, या मानो तुम अज्ञानी मुझे ।
पर, अपने जीवन आदर्शों से , कभी होती नहीं हैरानी मुझे ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG'तेरा'अनुभव है फल पका हुआ, खोज है कच्चा 'मेरा' फल ।
कुछ नया मुझे भी करने दो, शायद जग माने उसको कल ।।
Monday, August 02, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
1 comments:
yes...very good. anubhution ka ye apar,agagdh sagar hum tk lane k liye thank u.
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