नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
सन्नाटा....
रात का सन्नाटा ख़ामोशी से,जब चारो तरफ पसरता है। बस्तियां सुनसान कर, जंगलों को आबाद करता है।
भेड़ बकरियों की खोज में, भेडियों का दिल मचलता है।
इनके पीछे पीछे कुछ, गीधड़ो का झुण्ड भी चलता है।
इनका पेट भले ही भर जाये, मन नहीं कभी भरता है।
इन्सान के अन्दर छुपा,शैतान नहीं कभी मरता है।
रात के सन्नाटे का, अपना ही नशा होता है।
सफेद्पोस लोगों के, काली करतूते छुपा लेता है।
जुल्म और बेईमानी की, रंगत को बढा देता है ।
कमजोर और कायरों को, बहादुर मर्द बना देता है।
बेबस लाचार शिकारों को, दुल्हन सा सजा देता है।
मन में छिपी कुंठाओ को, भरपूर मजा देता है।
रात के सन्नाटे का, यह असर भी होता है।
भीड़ के सूरमाओ की, रोंगटे खड़ा कर देता है।
अपनी ही परछाहियो से, लोगों को डरा देता है।
स्वयं इंसाफ करने वालो को, मौका ये दिला देता है।
कभी जुल्म करने वालो की, बस्तियां जला देता है।
कभी रातो रात ये, राजाओ की सत्ता बदल देता है। (१०/०२/२००४)
Tuesday, July 20, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
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