नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
झूंठा सच्चा, सच्चा झूंठा
लोग कहते हैं झूंठ के , पैर नहीं होते हैं ।
सच है, मैंने उसे घिसटते हुए देखा है ।
लोग कहते हैं झूंठ, सच के बल पर चलता है ।
झूंठ है, मैंने उसे सच को चलाते देखा है ।
लोग कहते हैं अंत में, सच की जीत होती है ।
सच है, खरगोस को मैंने रस्ते में सोते देखा है ।
ऊपर के शब्दों में मैंने, कुछ झूंठ कहा बाकी सच है ।
ये बात जान लो फिर भी तुम, झूंठ का हिस्सा इसमें कम है ।
तुमको जैसा भाए वैसा, तुम इसको स्वीकार करो ।
सच झूंठ अलग करने में, ना व्यर्थ कोई विवाद ।
क्या कहते है जग वाले , ना अपना समय बर्बाद करो ।
बस अपने मन की सुनकर तुम , अपने मन की बात करो ।
०५/०५/२००४
Sunday, July 18, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
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