नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
चाह रहा हूँ बस इतना...
नहीं चाहिए ऐसा कुछ , जो है हक़ यहाँ औरों का ।
ना चाह मुझे मै पा जाऊँ , संचित थाती गैरों का ।
नहीं देखता किसी पराई , वस्तु का मै कोई सपना ।
खुश हूँ मै उस सब से , जो कुछ जग में है अपना ।इस जग में ईश्वर ने जब , सबको अलग बनाया है ।
उनके कर्मो पर आधारित , भाग्य अलग बनाया है ।
क्यों कर मन में लोभ जगे , देख परायी चीजों को ।
इर्ष्या से क्यों कर मै जलूँ , भाग्य देखकर औरों का ।बीत गया जो भूत काल है , बदल नहीं सकते उसको ।
आना है जो आगे भविष्य , अनिश्चित कहते है उसको ।
वर्तमान पर हक़ अपना है , वर्तमान को ही जीना है ।
आगा-पीछा सोंच व्यर्थ में , समय नष्ट नहीं करना है ।बनी रहे सदबुद्धि मेरी , हे ईश्वर मुझ पर कृपा करो ।
जो मेरा है मुझको दो , बस इतना मुझ पर कृपा करो ।
सहेज सकूँ अपनी चीजे , बस इतना मुझको सामर्थ्य दो ।
रहे कृपा मुझ पर तेरी , बस इतना ही मुझको वर दो ।
Monday, September 13, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
4 comments:
बहुत बढ़िया रचना ... बधाई
well written and executed...
वाह जी आप सुंदर कविताएं लिखते हैं.
Bahut sundar vichar...vastav main santusti hi jeevan main khushiyon ka aadhar hai...
http://www.sharmakailashc.blogspot.com/
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