नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
मूर्ख मन..
होता है आसान बहुत , अपमानित करना औरों को ।
जहर उगलना विषधर बन , कलंकित करना औरों को ।
बड़ा मजा आता है मन को , सुनकर निंदा औरों की ।
भरता पेट अहम् का जब , व्यथा देखता औरों की ।
जटिल जीव इन्सान यहाँ , बोता कुछ फल चाहे कुछ ।
नीचा दिखाकर औरों को , ऊपर उठना चाहे कुछ ।
औरों को जहर पिलाता है , स्वयं मरने से डर जाता है ।
अपमान के घूँट को जन्मो तक , भूल नहीं वो पाता है ।
राख के ढेर में जैसे कोई , सुलगा करती चिंगारी है ।
मन की जटिल ग्रंथियों में , बदले की भावना रह जाती है ।
जिस दिन मिलता अवसर है , पलटवार मानव करता है ।
अपने अपमानो का बदला , गिन गिन कर वो लेता है ।
इतने पर भी मानव को , है नही समझ ये सीधी सी ।
अपमानित करते आज जिसे , उसका वक्त भी होगा कभी ।
जो चाह रहे हम अपने लिए , क्या देते है वो औरों को ?
स्वर्ग चाह कर अपने लिए , नरक में रखते औरों को ।
क्यों याद नहीं रख पाते हैं , जो बोया वो ही काटे हैं ।
बोकर पेड़ बाबुल का कब , आम का फल हम पाते हैं ।
Tuesday, September 07, 2010
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ब्लागाचार by विवेक मिश्र "अनंत" is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivs 3.0 Unported License.
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
2 comments:
सार्थक प्रस्तुती लेकिन आज लोग मजबूर ओर परेशान कर दिए गए हैं ऐसा करने के लिए | क्योकि जब सरकार के कर्ता धर्ता आम जनता से दूर होकर पूंजीपतियों के दवाब में आकर पूरी सरकार को दलाल बना देती है तो आम जनता के पास परेशान होकर साकार को कोसने के अलावे कोई चारा नहीं रह जाता है ,क्योकि सभी सुविधा इन दलालों द्वारा सुनियोजित ढंग से लूट ली जाती है ओर आम जनता कराहती रहती है अपने मूलभूत जरूरतों के लिए , सरकार दलाल बन जाने के कारन किसी भी शिकायत पर कार्यवाही ओर निगरानी की व्यवस्था ख़त्म हो जाती है ,आज इस देश की ऐसी ही अवस्था है ...जरा गांवों में जाकर आम लोगों से मिलिए ओर उनके दुखों को सुनने का प्रयास कीजिये ...
बहुत अच्छी प्रस्तुति…………………।
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