नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
खोखली है जिंदगी.......!
खोखली है जिंदगी , खोखले आदर्श सब ।
खोखली बातों के संग , जी रहे है लोग सब ।
जो नहीं खुद को पसंद , वो चाहते औरों से हम ।
जो नहीं कर पा रहे , कह रहे शब्दों में हम ।
घट रहा जो भी यहाँ , चलचित्र सा लगता कभी ।
एक ही सुर ताल पर , जब डोलने लगते सभी ।
मर चुकी संवेदनाये , पत्थर के हैं इन्सान ज्यों ।
इंसानियत की चाह में , फिर जी रहें है लोग क्यों ?हाथ में पत्थर नहीं , पर शब्द पत्थर से ना कम ।
मासूम सा चेहरा मगर , दिल जालिमो से है ना कम ।
जो नहीं कह पा रहे , लिख रहे शब्दों में हम ।
खोखली है जिंदगी , खोखले हो चुके हैं हम ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Tuesday, September 07, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
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