नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
रुपये का स्वरुप
Tuesday, August 17, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
2 comments:
मिश्र जी बहुत अच्छे|
जिस पहचान में ही घोटाले की भरमार हो उस देश के वित्तमंत्रालय के कार्यों में हो रहे अनियमितता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है | इसे इस देश के घोटाले के चिन्ह के रूप में भी जाना जायेगा ...शर्मनाक है इस देश की सरकारी कार्यप्रणाली ...सबूतों और तथ्यों के साथ शिकायत करने के बाबजूद देश का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी मौन रहता है ...
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