नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
चाह रहा हूँ लिखना कुछ
चाह रहा हूँ लिखना कुछ , पर दिशा नहीं पाता हूँ ।
शायद मन के भावों को , मै पहचान नहीं पाता हूँ ।
बचपन से लेकर अपनी, मै युवावस्था तक आता हूँ ।
धर्म कर्म से लेकर अपनी , कूटनीति तक जाता हूँ ।
मन के भावों को लेकिन , मै शब्द नहीं दे पाता हूँ ।
शायद मन के भाव अभी , परिपूर्ण नहीं हो पाये है ।
या फिर शायद भाव अभी, परिपक्व नहीं हो पाये है ।
जो भी हो लेकिन लिखने को, शब्द नहीं मै पाता हूँ ।
आखिर मैंने सोंचा कि, इस व्यथा को ही लिख डालूं ।
व्यथा को ही यूँ लिखकर अपनी, रचना मै रच डालूं ।
चाह रहा हूँ लिखना कुछ , पर दिशा नहीं दे पाता हूँ ।
व्यथा को ही यूँ लिखकर अपनी, रचना मै रच डालूं ।
चाह रहा हूँ लिखना कुछ , पर दिशा नहीं दे पाता हूँ ।
भटक रहे मन को अपने, संयमित नहीं कर पाता हूँ ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Sunday, August 08, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
1 comments:
बड़ी उहापोह सी स्थिति ....अच्छी अभिव्यक्ति
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