नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
अथ नेता उवाच
आओ पापी जानो तुम्हे ,मै सारे पाप सिखाता हूँ ।
भारी भरकम जेबों को , मै हल्का करना बतलाता हूँ ।
उस से आगे बढ़ कर मै , चोरी की कला बताता हूँ ।
लूट-पाट करना जमकर , मै पल में ही सिखलाता हूँ ।
गला काट कर शीश सहित , गायब होना पढाता हूँ ।
ब्याभिचार की सभी कलाएं , सचित्र तुम्हे सिखाता हूँ ।
कैसे लेते रिश्वत है ? , कैसे उसे पचाते है ??
कैसे औरों का मॉल हड़प कर , अपना उसे बताते है ।
लोकतंत्र के नाम पर कैसे , हम मिलकर लूट मचाते है ।
हमसे ज्यादा कौन अनुभवी , होगा पाप की दुनिया में ।
हमसे ज्यादा कौन पतित , होगा पूरी दुनियां में ।
नेतागीरी करते हम , देखो सारी दुनिया में ।
इसीलिए तो जनता ने , नेता हमें बनाया है।
देख हमारे अनुभव को , हमें सत्ता में पहुँचाया है ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Tuesday, August 17, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
1 comments:
सराहनीय अभिव्यक्ति
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