नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
जो गिद्ध हैं प्रसिद्ध हैं, हम इन्सान हैं इसलिये परेशान हैं।
दोस्तों,
कुछ साल पहले की बात है, मै कुछ परेशान था, कुछ हैरान था, काम मै करता हूँ प्रसिद्ध कोई और पा जाता है। और फिर एक दिन मुझे मेरे गुरु ने बताया :-
"जो गिद्ध हैं प्रसिद्ध हैं, हम इन्सान हैं इसलिये परेशान हैं"
उक्त गिद्ध ज्ञान को जान कर वास्तव में मेरी सभी चिंता परेशानी तिरोहित हो गयी
और फिर
मैंने तत्काल जगत कल्याण हेतु, गिद्ध ज्ञान साहित्य में इजाफा करने एवं माननीय गिद्धजनो से अपने राजनय सम्बन्ध मधुर करने हेतु कुछ लिखने का प्रयास किया था उसे पुन: आप लोगों के सामने इस आशय से प्रस्तुत कर रहा हूँ कि :-
"भले ही एस.एम.कृष्णा एवं शाह महमूद कुरैशी 'भारत' और 'ना-पाक' के मध्य बेहतर राजनय सम्बन्ध बना पाने में अ-सफल रहे हो " पर शायद इससे हमारे और आपके राजनय सम्बन्ध बेहतर हो सकें -
जब जान रहे हो तुम जग में , गिद्ध ही होता सदा प्रसिद्ध ।क्यों पूंछ रहे हो फिर मुझसे, तुमसे ज्यादा क्यों गिद्ध प्रसिद्ध ?तो सुनो आज बतलाता हूँ , मै तुमको राज सुनाता हूँ ।है गिद्ध कि दृष्टि बहुत प्रबल , वह मौका सदा ताकता है ।मौका मिलते ही वह सबको , निश्चल मन से खा जाता है ।उसके लिए जगत के सारे, प्राणी सब एक समान हैं ।उसके लिए दुखों के क्षण भी, सुख के ठीक समान हैं ।बैर नहीं है उसे किसी से, ना वो कभी मित्रता करता ।लाभ अगर दिख जाय उसे, सबसे आगे खड़ा वो मिलता है ।मौका मिलते ही वह पूरा, कूरा (हिस्सा) चट कर जाता है ।बाट जोहने वालो को वह , खाली ठेंगा दिखलाता है ।पता निशां भी पीछे अपने, नहीं छोड़ कर जाता है ।अंतर्यामी होता है वह , है तीनो कालों का वो स्वामी ।भूत भविष्य और वर्तमान का , मानव केवल अनुगामी ।पहले भी बतलाया था , अब फिर से राग सुनाता हूँ ।जो गिद्ध बन गया इस जग में, वह प्रसिद्ध हो जाता है ।सुनकर गिद्ध ज्ञान मानव भी, मुक्त दुखों से हो जाता है ।यूँ पुनर्जन्म लिए बिना , मानव-तन में गिद्ध समाता है ।

जय हो बाबा गिद्धनाथ की............२०/०३/२००९
गिद्ध साहित्य का प्रचार प्रसार पुन: आगे फिर होगा..
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Saturday, July 17, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'
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