नोट : यह मूल ब्लॉग " अनंत अपार असीम आकाश" की मात्र प्रतिलिपि है, जिसका यू.आर.एल. निम्न है:-
आपके परिचर्चा,प्रतिक्रिया एवं टिप्पणी हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से प्रस्तुत है-
कसौटी
किसी ने क्या खूब कहा है -
" आप जिस कसौटी पर परखते है हमको,
अगर आपको परखा जाय तो अंजाम क्या होगा "
हम इस संसार में,मानवीय रिश्तों के मायाजाल में और शुद्ध व्यवसायिक लेन देन में जिन कसौटियो पर दूसरो को परखते है और उनके बारे में जितनी सरलता से कोई भी निष्कर्ष निकाल लेते है कभी हमने सोंचने की जरुरत महसूस की कि अगर हमे भी उन्ही कसौटियो पर परखा जाय तो वास्तव में क्या निष्कर्ष होगा ?
शायद वही जो हम दूसरो के लिए निकालते है ...!
और अगर अपने बारे में यह मानने को हमारा मन तैयार नहीं है और इसके लिए हमारे पास तरह तरह के तर्क है तो इसका अर्थ है कि हमारे अन्दर का अहंकार झुकने को तैयार नहीं हो रहा है!
तो आगे से यह कहने के पहले कि " अगर मै उसकी जगह होता तो मै एसा करता या वैसा नहीं करता" दो पल के लिए इमानदारी से स्वय को अपनी उन्ही मान्यताओ,काल पात्र समय और संबंधो की जटिलताओं के दायरे में रखकर विचार करें और निर्विकार भाव से तमाशा देखें ।
आपको अपने आप अपनी असलियत पता चल जायेगी । क्योंकि ......
खोखले आदर्श और कोरे सिद्धांत,
दूर से बड़े मनोहारी लगते है ।
०८/०५/२००४इनके आगे छटा बिखेरते सप्तरंगी,इंद्र धनुषो के रंग भी फींके लगते है ।लेकिन क्या सच में ऐसा ही होता है,शेर कि खाल में सियार नहीं चलता है?पूंछो जरा उनसे जिन पर गुजरता है,ढोल कि पोल का उनको पाता होता है।जब तक है किस्मत बिकेगा हर मॉल,फिर कौन पूंछता क्या है तेरा हाल ।फिर तो लगनी है दोनों की बोली,किसी अजायबघर में सजनी है डोली ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
Wednesday, July 14, 2010
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अनुरोध
शब्दों पर ना जाये मेरे,बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में,मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो,या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे,बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत,या समझो तुम इसे फँसाना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
विवेक मिश्र 'अनंत'




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